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Archive for अप्रैल, 2007

चिट्ठ चर्चा 

किसानों आप लोग सोरहा हैं क्या ?   अब समय आगया जागने का। जो खाने पीने की दाम बढजायेगा तो रुपये का मूल्य कम होजायेगा । उस वजह से सबजी, चावल, गेहू आदी चीजों की दाम बढने से रोकने की केशिश चारों तरफ से हो रहा हैं। sharemarket की इन्डेक्स बढें, जाली रुपया फैलें(जो नहीं होना चाहिए), सरकारी कर्मचारियों के धनका बढें, बेंकों (Banks) में पैसा deposit  ज्यादा होजायें तो रुपये की मूल्य बढ जायेगी और डोलर (dollar) की दाम कम होजायेगा। सरकारी कर्मचारियों को  पिछले 23 साल से धनका दस दशमल पाँच गुणा बडगया, खेतों में काम करने वाले मजदूर का भी दस गुणा बढा लेकिन सबजी, गेहू या चावल की दाम में कितना बढोत्री हुआ ? मेरा पेनषन (pension) 1985 में 372 था तो अब 3100 करीब हैं। जब मेरा DA बढेगा तब essential comodities में खाने पीने की चीजों को प्रथम स्थान हैं क्या ?

जब रुपये की मूल्य कम होजायेगा विदेशों में काम करनेवाला पैसा हिन्दुस्तान में भेजकर उनको ज्यादा कमाई हो जायेगा। जब  रुपया की मूल्य बढेगा उनके कमाई कम हो जयेगा। इस का मतलब यह हैं कि खाद्य सामग्रियों का दाम बढेगा तो किसानों और विदेश में काम करनेवालों को मुनाफा होगा। परन्तू हमारा देश यह नहीं चाहता।  Agricultural produces की दाम कम रहें और बिना टाक्स या ड्यूटी की आयात निर्यात (Export Import) कर सके यही हमारे सरकार की कओशिश हैं या WTO का दबाव जारी हैं। भारी रकम सब्सिडी देकर चीनी का निर्यात गन्ने किसानों को मदद करने केलिले हैं क्या ? नहिं यह सब कुच्छ मध्यवर्ती (Middlemen) को मदद करने केलिये ही हैं। रबर आयात केलिये तायलन्ट से समझोदा (agrement) करके रबर बोर्ड की चेयरमान किसानों को मदद करने केलिये निर्यात करनेवालों को इक्कटा कर रहे हैं। आदरणीय कमलनाथ जी बोलता हैं कि भारत में रबर की कमी हैं और चेयरमान बोलते हैं कि रबर दिसंबर 31 तारिक को 1,41,000 टणें (Tonnes) ज्यादा स्टोक हैं।

खेती करके घाटे या भारी कर्ज की कारण किसान आत्महत्या (Suicide) करें तो भी कोई बात नहीं। खून पशीना बहाकर जो जमीन से पैदा करके कम या सस्ते दामों में सफेद कोलर (white collar) कर्मचारियों को खिलाना पिलाना किसानों के कर्तव्य हैं क्या ? किसान भी किसानों के खिलाफ हैं। अपने पैदा किया हुआ चीजों का ही सही दाम चाहते हैं। दूसरों के पैदा किया हुआ चीजें सस्ते में खरीदना ही चाहता हैं। अगर एक किसान दूसरे का पैदा किया हुआ चीजें सही दामों में (above cultivation cost & profit) खरीदेगा तो किसी को हिम्मत नहीं होगा डोलर की मूल्य बढजायेगा या रुपये की मूल्य गिर जायेगा करके खाने पीने की चीजों का दाम गिराने का। क्यों कि किसानों की गिन्दी भारत में सबसे ज्यादा हैं।  

भारतीय किसानों के पैदा किया हुआ चीजें कम दामों में निर्यात करके उसी चीजें ऊँचे दामों में भसल उगालते वक्त पर आयात करना अपने खजाना लूटने की बराबर नहीं हैं क्या ? WTO किसानों के खिलाफ हैं।

क्या आपको पता हैं ? हिन्दुस्थान में हर बच्चा जनम लेता हैं भारी विदेशि कर्ज के साथ। सिर्फ केरल की विदेशि कर्ज 57,000 क्रोर हैं। यहाँ जो revenue income सरकार को मिलते हैं उसमें से 92% सरकारी कर्मचारियों का धनका और पेनषन (pension) केलिए और बाकि विदेशि कर्ज के interest देनें में लग जाता हैं। इस हालात में देश की विकास कैसे होगा ? World Bank, IMF, ADB आदी हमें विकास के नाम लूटेगा। हर State का यही हाल हैं।

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